"जब सर्वहारा विजयी होता है, तो वह समाज का कदाचित निरपेक्ष पहलू नहीं बनता है, क्योंकि वह केवल अपना और अपने विरोधी का उन्मूलन करके ही विजयी होता है. तब सर्वहारा लुप्त हो जाता है और साथ ही उसके विरोधी का, स्वयं निजी सम्पति का भी, जो उसे जन्म देती है, लोप हो जाता है.."
No comments:
Post a Comment