देश के तमाम छोटे-बड़े उद्योगों व कार्यालयों में
कार्यरत वर्ग-सचेत मज़दूरों, क्रांतिकारी मज़दूर
मेहनतकश संगठनों, संघर्षशील व बहादुराना ट्रेड
यूनियनों तथा व्यक्तियों के नाम एक सन्देश !!
ईसीएल में कोयला मज़दूरों के द्वारा चलाये जा रहे "बायोमेट्रिक अटेंडेंस विरोधी आंदोलन" के समर्थन में खड़े हों
देश के सभी कारखानों, फैक्टरियों, कार्यालयों और कार्य स्थलों पर लागू किये जा रहे बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम के विरुद्ध संगठित और लामबंद हो और संघर्ष खड़ा करें
क्यों ? इसलिए क्योंकि
i) "बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम" मज़दूरों-कामगारों की निजता, स्वतंत्रता और उनकी आज़ादी व जनवाद पर और इसलिए हमारे मौलिक व सहज मानवीय अधिकारों पर सीधा हमला करता है। "बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम" दरअसल अटेंडेंस सिस्टम कम, हमारे शरीर के महीन अंगों व हिस्सों जैसे आँख, आँख का रेटिना, चेहरा, फिंगर लाइन्स, यहाँ तक कि नस, डी.एन.ए आदि के बायोमेट्रिक स्कैन के जरिये हमसे जुड़ी हमारी तमाम निजी यूनिक (विलक्षण) जानकारियों को लेकर एक डाटाबेस तैयार करने का एक उद्योग ज्यादा परिलक्षित होता है ( दिखाई देता है)। हमारे पूंजीवादी रोजगारदाताओं और हमारे देश की उत्पादन परिस्थितियों के स्वामियों को हमारे देश का (पूंजीवादी) संविधान और कानून यह हक़ जरूर देता है कि वे हमारी उपस्थिति दर्ज़ करें और इसके लिए मौजूदा विश्व में उपलब्ध तमाम तरह के आधुनिक तथा दक्ष से दक्ष उपकरणों का इस्तेमाल करें, लेकिन इन्हें यह अधिकार कतई नहीं है कि वे हमारी पूरी तरह निजी व अत्यंत संवेदनशील, सूक्ष्म व विलक्षण शारीरिक जानकारियों को हथिया लें और फिर उनका एक डाटाबेस तैयार करके उसे ऑनलाइन कर दें। "बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम" के नाम पर कुछ ऐसा ही किये जाने की पुख्ता संभावनाएं है। इसके हम अनेको खतरे गिना सकते हैं और फिर इसके जवाब में प्रबंधन या मालिक व सरकारी लोग "खतरे नहीं हैं" के पक्ष में दर्जनों तर्क दे या दिला सकते हैं, हम इस पर बाद में बात/चर्चा करेंगे, लेकिन हमारा सबसे पहला विरोध ठीक इसी बात को लेकर है कि प्रबंधन को हमारे शरीर से जुड़ीं अतिसूक्ष्म जानकारी चाहिए ही क्यों? हमारी हाजिरी लगाने के नाम पर हमारे शरीर की सूक्ष्म जानकारियों को संगृहित करने का अधिकार इन्हें किसने दिया है? प्राकृतिक न्याय की दृष्टि से या किसी अन्य दृष्टि से भी यह पूरी तरह स्पष्ट है कि सरकारी या गैरसरकारी "एम्प्लायर" होने के नाते और पूंजी के प्रत्यक्ष स्वामी होने के नाते भी उन्हें अपने मातहतों के साथ ऐसा व्यवहार करने का कोई हक़ नहीं है। लेकिन क्योंकि सत्ता पूंजीपतियों तथा उनके लगुए-भगुए की है, कोर्ट-कचहरी भी उनके ही हैं, फौजी वर्दी की ताकत भी उनके पास ही है, तो बिना किसी चीज़ का ख्याल किये वे जबरदस्ती इसे लागू करते हैं और कर रहे हैं। इन सबके अतिरिक्त सरकार, प्रबंधन और हमारे 'रोजगारदाताओं' के पास "बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम" मज़दूरों-कामगारों-कर्मचारियों पर लादने का नैतिक बल या और कोई तर्क नहीं है। ( यह लेख आगे जारी रहेगा ……… )
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