Thursday, April 2, 2015

(''सर्वहारा'', न्‍यू सीरीज न; 3 से) 

ईसीएल बी.आई.एफ.आर. से बाहर, मिनिरत्न का दर्जा शीघ्र:

लेकिन इसीएल के मजदूरों-कर्मचारियों के लिए इसके क्या मायने हैं 

ईसीएल के मजदूरों, खासकर कौन्ट्रैक्ट मजदूरों की हड्डियाँ 
तक निचोड़ने  के बाद ईसीएल को मिली इस उपलब्धि का गुणगान 

कॉरपोरेट जेसीसी में यूनियन वाले  किस मुँह से और क्यों कर रहे हैं?  

12 मार्च 2015 को संकतोरिया में कॉरपोरेट जेसीसी की बैठक हुई। उसमें इस्‍टर्न कोलफील्‍ड लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (सी.एम.डी) ने जेसीसी के यूनियन प्रतिनिधियों से कहा कि ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड जल्द ही 'मिनिरत्न' कंपनी का दर्जा प्राप्त कर लेगी। उन्‍होंने बताया कि कंपनी इसी सप्ताह में भारत सरकार को इसके लिए आवेदन करेगी। ईसीएल के इस उच्‍चतम प्रबंधन का दावा है कि इस दर्जे को पाने के लिए कंपनी सभी जरूरी पात्रता पूरी करती है। उन्होंने यह भी कहा कि मिनिरत्न का दर्जा मिल जाने के बाद कंपनी को और ज्यादा वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त हो जाएगी। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा और जेसीसी के यूनियन प्रतिनिधियों ने भी सीएमडी से यह पूछने की जरूरत नहीं समझी कि मिनिरत्न का दर्जा प्राप्त करने में जिन मजदूरों की हडि्डयों तक को निचोड़ लिया गया है उनके लिए यह खुशी क्या मायने रखती है। सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि कॉरपोरेट जेसीसी के यूनियन प्रतिनिधियों ने कंपनी के बीआइएफआर से बाहर आने पर कंपनी के सभी श्रमिकों व कर्मचारियों को बधाई तो दी, लेकिन, अख़बार में प्रकाशित समाचार के अनुसार, जेसीसी सदस्यों ने जिस तरह से सीएमडी के विशेष नेतृत्व कौशल का गुनगाण और बखान किया, उसने यह दिखाया कि उन्हें मजदूरों के हितों की कितनी चिंता है। जेसीसी सदस्यों ने सीएमडी को गुलदस्ता भेंटकर सम्मानित भी किया। इस अवसर पर कंपनी के तकनीकी निदेशक (संचालन) सुब्रत चक्रवर्ती, कार्मिक निदेशक के.एस. पात्र, तकनीकी निदेशक (योजना-परियोजना) बी.आर. रेड्डी, महाप्रबंधक (कार्मिक एवं औद्योगिक संबंध) आर.के. राउत, सी.एम.डी. के तकनीकी सचिव निलाद्री राय, कंपनी के कई दूसरे उच्चाधिकारी भी उपस्थित थे। 

    इस मौके पर ख़ुशी और जश्न मनाते लोगों से हम यह पूछना चाहते हैं कि क्या ई.सी.एल. को मिली इस 'महान' उपलब्धि का मजदूरों के जीवन पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? इस अवसर पर एक-दूसरे की पीठ थपथपाते ई.सी.एल. के प्रबंध निदेशक और कॉरपोरेट जेसीसी में शामिल यूनियनों के नेतागण हमारे इन प्रश्नों का जवाब देंगे: क्या यह उपलब्धि हासिल करने के बाद प्रबंधन मजदूरों के घरों और क्वार्टरों में चौबीसों घंटे उचित वोल्टेज की बिजली प्रदान करेगा? मजदूरों के पीने के लिए शुद्ध पानी की व्यवस्था करेगा? मजदूर मोहल्लों, जो अधिकांशतः नरक बने हुए हैं, की साफ़-सफाई के लिए कुछ कदम उठाएगा? क्या मजदूरों की खदानों के अन्दर लगातार बढ़ते काम के बोझ में कुछ कमी आयेगी? मजदूरों के क्वार्टर मानवीय गरिमामय जीवन की आवश्यकता की पूर्ति करें इसके लिए प्रबंधन कुछ ठोस और कारगर कदम उठाएगा? और मुख्यतः जिन कॉन्ट्रैक्ट मजदूरों का कतरा-कतरा चूस कर यह उपलब्धि हासिल की गयी है उनके जीवन में यह उपलब्धि कुछ ठोस और सकारात्मक बदलाव लाएगी? क्या ई.सी.एल. प्रबंधन उन्हें इसके इनाम स्वरुप नियमित करेगा? क्या उन्हें ठेकेदारी प्रणाली से प्रबंधन मुक्ति दिलाएगा? क्या उनकी अन्‍य चिर लंबित मांगें प्रबंधन पूरी करेगा? 

2012-13 के इन अप्रत्याशित आँकड़ों के बावजूद मजदूरों को मिला है पिछले तीन सालों में.... 
'' ईसीएल ने वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान 1897.18 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित कर ईसीएल के इतिहास में रिकार्ड कायम किया है। बीते वित्तीय वर्ष के दौरान ईसीएल ने 33 मिलियन टन के उत्पादन लक्ष्य की जगह 33.90 मिलियटन टन का उत्पादन किया। 33.85 मिलियन टन की जगह 35.54 मिलियन टन कोयला का संप्रेषण किया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में 16.57 प्रतिशत अधिक है। जबकि अधिभार हटाने में लक्ष्य 60 मिलियन टन क्यूबिक मीटर के मुकाबले 76.45 मिलियन क्यूबिक मीटर की सफलता पाई है जो पिछले वर्ष के मुकाबले 26.77 प्रतिशत अधिक की उपलब्धि है। ये आंकड़े ईसीएल के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि को बता रहे हैं - उक्त बातें ईसीएल के सीएमडी राकेश सिन्हा ने ईसीएल स्टेडियम डिसरगढ़ में 2013 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कही। उन्होंने यह भी कहा कि कोल इंडिया की सभी अनुषंगी इकाईयों में ईसील की सकारात्मक वृद्धि सबसे अधिक है। उन्होंने यह भी कहा कि राजमहल क्षेत्र में 17 एमटी विस्तारीकरण परियोजना लक्ष्य पर पहुँचने के कगार पर है। चितरा खुली खदान परियोजना की 2.5 एमटी की विस्तारीकरण योजना को भी मूर्त रूप देना शुरू किया जा चुका है। भूमिगत खदानों में उत्पादन बढ़ाने के लिए कंपनी का तीसरा कंटीन्यूअस माइनर मशीन इस वर्ष के अंत तक कार्य शुरू कर देगी। इसके अलावा और पांच कंटीन्यूअस माइनर मशीन लगाने की परिकल्पना पर कार्य चल रहा है। इधर झांझरा क्षेत्र की 1.7 एमटी प्रति वर्ष उत्पादन के लिए लांगवाल प्रक्रिया में अपेक्षित प्रगति हो रही है। आदि आदि ............''
 
हमें मालूम है ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। पूँजीवादी व्यवस्था में पब्लिक सेक्टर कंपनियाँ निजी नहीं होती हैं, लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि वे समाज के स्वामित्व में चली जाती हैं और पूरी जनता उनका मालिक बन जाती है। अगर ऐसा होता तो कोयला मजदूरों या अन्य सेक्टर में कार्यरत मजदूरों का यह हाल न होता जैसा कि है। पूँजीवादी व्यवस्था में पब्लिक सेक्टर कंपनियों के कर्ता-धर्ता और मालिक नौकरशाह बन बैठते हैं। ये भी पूँजीपति वर्ग का ही एक संस्तर हैं। मंत्रालयों से लेकर पब्लिक सेक्टर कंपनियों के छोटे-से-छोटे नौकरशाह तक जनता के खजाने से निर्मित इन कंपनियों की लूट में शामिल रहते हैं। लूट का एक हिस्सा यूनियनों को अपना सेवक बनाने में भी नौकरशाह खर्च करते हैं। लेकिन जैसे ही मजदूरों के जीवन में सुधार की बात आती है, बड़ा ही अच्छा बहाना मिल जाता है इस नाम पर कि कंपनी घाटे में है। लेकिन हम अगर यह सच भी मान लें तो, आज जब ईसीएल घाटे से बाहर निकल चुका है, क्या प्रबंधन अब मजदूरों की जिंदगियों में कुछ सुधार के लिए प्रयत्नशील होगा? क्या कॉर्पोरेट जेसीसी के नेता अपने जश्न में खलल डालते हुए प्रबंध निदेशक से यह पूछने की हिम्मत करेंगे कि जिन मजदूरों के बल पर यह उपलब्धि हुई है, क्या उनकी जिंदगी के तरफ भी कंपनी अब नज़र करेगी? अगर नहीं, तो क्या उन्हें ई.सी.एल. के नौकरशाहों के साथ जश्न मनाने का हक़ है?     

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