25 मार्च 2015 को
दिल्ली सचिवालय के बाहर मज़दूरों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज का विरोध करें
आम आदमी पार्टी और चाहे जो हो, यह मजदूर वर्ग की
पक्षधर पार्टी कतई नहीं है
25 मार्च को दिल्ली में मज़दूरों पर बर्बर लाठी चार्ज हुआ। माना जा रहा है कि यह दिल्ली में पिछले दो दशक में विरोध प्रदर्शनों पर हुए पुलिस के हमलों में शायद सबसे ज्यादा बर्बर हमला था। यह भी कहा जा रहा है कि इस लाठी चार्ज का आदेश सीधे अरविंद केजरीवाल की ओर से आया था। पुलिस हिरासत में रहने के दौरान कुछ पुलिसकर्मियों से आंदोलनकारियों से हुई बातचीत के आधार पर यह कहा जा रहा है। मजदूरों का 'जुर्म' शायद केवल यह था और है कि वे ‘आप’ और अरविन्द केजरीवाल द्वारा दिल्ली चुनावों में उनसे किए गए वायदे को भूलने को तैयार नहीं हैं और इसके लिए वे केजरीवाल को उनके किए वायदों की याद कराने और चेताने चले गए थे। आज यह स्पष्ट हो चुका है कि अरबिंद केजरीवाल और आप पार्टी के स्वराज्य में चाहे जिसके लिए भी जगह हो, मजदूर-मेहनतकश वर्ग के लिए इसमें कोई जगह नहीं है। आम आदमी पार्टी ही क्यों, कोई भी बुर्जुआ पार्टी चाहे जिस किसी भी वर्ग को अपनाए, राजनीतिक रूप से उसे सक्रिय करे, जगाए और राजनीति में उन्हें ले आने की बात व कोशिश करे, लेकिन मजदूर वर्ग को सभी बुर्जुआ पार्टियाँ एक मत से राजनीति से दूर रखने की बात करती हैं। संसद में देखा गया कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ सारी पार्टियाँ एकजुट हो गईं, दिखावटी ही सही, लेकिन वे किसानों के पक्ष से सरकार का विरोध कर रही हैं, लेकिन क्या यही एकजुटता श्रम कानूनों को पूँजी के हितों के अनुरूप बदल देने की मोदी सरकार की कारईवाई के खिलाफ दिखी? बिल्कुल ही नहीं। लेकिन क्यों? मजदूर वर्ग के सवाल पर एक तरह से मानों सभी पार्टियों में सहमति है कि मजदूरों पर चाहे जैसा भी हमला हो, उसके खिलाफ चाहे जैसा भी कानून या अध्यादेश पारित करना हो सभी पार्टियाँ एकजुट हो सरकार की मदद करती हैं। सरकारी कंपनियों व उद्योगों के निजीकरण का मसला हो, श्रम कानूनों में पूँजीपक्षीय सुधार की बात हो, बीमा विधेयक पारित करना हो, मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार व अन्य जनवादी अधिकारों पर पाबंदी लगाने की कोशिश हो, मजदूर वर्ग द्वारा बुर्जुआ वर्ग के हमलों के प्रतिकार में किए गए प्रतिरोधों को कुचलने की बात हो और मजदूर वर्ग के मुँह पर पूरी तरह से ताला जड़ने की कोशिश हो, हम देखते हैं कि सभी संसदीय पार्टियाँ एकस्वर से एक साथ खड़ी हो जाती हैं। जाहिर है बुर्जुआ पार्टियाँ अन्य दूसरे निम्नपूँजीवादी और मध्यवर्ती तबकों के मसलों के साथ दिखाबटी ही सही लेकिन खड़ी दिखने की कोशिश करती हैं, लेकिन मजदूर वर्ग के प्रश्न पर समस्त पूँजीवादी व निम्नपूँजीवादी पाटियाँ लगभग एकमत हो इसके खिलाफ खड़ी हैं। हमने यह भी देखा कि आम आदमी पार्टी को हर वक्त कोसने वाली पार्टियाँ भाजपा और कांग्रेस ने भी दिल्ली में मजदूरों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज का विरोध तक नहीं किया। मानों उनका मानना हो कि यह तो अच्छा ही हुआ। यही हाल मीडिया का भी है। मजदूर वर्ग के पक्ष से बोलने वाला न तो कोई मीडिया में है, न ही संसद में। यहाँ तक कि सीपीआई, सीपीएम और इसी तरह की अन्य संशोधनवादी पाटियों ने भी एक लफ्ज तक इसके बारे में नहीं बोला। बसपा, सपा, राजद, जेडी(यू) .. किसी ने भी दिल्ली में मजदूरों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज के विरूद्ध एक लफ्ज तक नहीं बोला। यह दिखाता है कि मजदूर वर्ग की समाज में स्थिति क्या है।
आंदोलनकारियों का कहना है कि ''इस महीने की शुरुआत से ही विभिन्न मजदूर संगठन, यूनियनें, महिला संगठन, छात्र एवं युवा संगठन दिल्ली में 'वादा न तोड़ो अभियान' चला रहे हैं, जिसका मकसद था केजरीवाल सरकार को दिल्ली के गरीब मजदूरों के साथ किए गए उसके वायदों जैसे कि नियमित प्रकृति के काम में ठेका प्रथा को खत्म करना,बारहवीं तक मुफ्त शिक्षा, दिल्ली सरकार में पचपन हजार खाली पदों को भरना, सत्रह हजार नये शिक्षकों की भर्ती करना, सभी घरेलू कामगारों और संविदा शिक्षकों को स्थायी करना, इत्यादि की याद दिलाना और सरकार को इन वायदों पर अमल करने के लिए दवाब बनाना या बाध्य बाध्य करने की कोशिश करना। 25 मार्च के प्रदर्शन की सूचना केजरीवाल सरकार और पुलिस प्रशासन को पहले से ही दे दी गयी थी और पुलिस ने पहले से कोई निषेधाज्ञा लागू नही की थी। लेकिन 25 मार्च को जो हुआ वह भयानक था।'' प्रत्यक्षदर्शी और भुक्तभोगी आंदोलनकारियों ने स्वयं यह बताया है कि ''पुलिस ने हमला किया, धमकी दी और गिरफ्तार किया।''
आइए, प्रत्यक्षदर्शियों और आंदोलनकारियों से यह जानने की कोशिश करें कि ''क्यों हजारों मजदूर, महिलाएँ और छात्र दिल्ली सचिवालय गए, उनके साथ कैसा व्यवहार हुआ और किस तरह मुख्य धारा के मीडिया चैनलों और अखबारों ने मजदूरों, महिलाओं और छात्रों पर हुए बर्बर दमन को बहुत आसानी से ब्लैक आउट कर दिया?''
जैसा पहले बताया जा चुका है, कई मजदूर संगठन अरविन्द केजरीवाल को उन उपरोक्त वायदों की याद दिलाने के लिए पिछले एक महीने से दिल्ली में 'वादा न तोड़ो अभियान' चला रहे थे जो उनकी पार्टी ने दिल्ली के मजदूरों से किए थे। उन्होंने दिल्ली के फैक्टरी मालिकों और दुकानदारों से किए वायदे तत्काल पूरे किए! बिजली और पानी के वायदे भी पूरे किए, लेकिन वे ठेका मजदूरों से किए वायदे को गोल कर दिए। हाँ, केवल सरकारी विभागों के ठेका मजदूरों के बारे में एक दिखावटी अन्तरिम आदेश जारी जरूर किया। वह भी यह दिखाता है कि ठेका मजदूरों के लेकर अरबिंद केजरीवाल और उनकी सरकार की मंशा झांसा देने की है। यह अंतरिम आदेश मात्र यह कहता है कि सरकारी विभागों/निगमों में काम करने वाले किसी ठेका कर्मचारी को अगली सूचना तक बर्खास्त नहीं किया जाएगा। इस दिखाबटी मजदूर व कमर्चारी प्रेम को भी सरकार कुछ दिनों के लिए भी नहीं निभा सकी। हम पाते हैं कि इस दिखावटी अन्तरिम आदेश के मात्र कुछ दिनों बाद ही, जैसा कि कुछ दिनों बाद ही अखबारों में खबर आयी, दर्जनों होमगार्डों को बर्खास्त कर दिया गया! स्पष्ट है कि अन्तरिम आदेश बेवकूफ बनाने का अस्त्र मात्र था। इसी परिस्थिति में दिल्ली के मजदूरों के बीच संदेह पैदा हुआ और परिणामस्वरूप विभिन्न ट्रेड यूनियनों, महिला संगठनों, छात्र संगठनों ने केजरीवाल को उनके किए वायदों की याद दिलाने के लिए सचिवालय मार्च करने का अभियान चलाया।
3 मार्च को डीएमआरसी के ठेका मजदूरों ने 'वादा न तोडो अभियान' की शुरुआत की। उसी दिन, केजरीवाल सरकार को 25 मार्च के प्रदर्शन के बारे में औपचारिक सूचना दे दी गयी थी। बाद में पुलिस प्रशासन को भी सूचना दी गयी। पुलिस ने पहले से किसी प्रकार की निषेधाज्ञा नोटिस जारी नहीं की हुई थी। लेकिन, जैसे ही प्रदर्शनकारी किसान घाट पहुँचे, उन्हें मनमाने तरीके से वहाँ से चले जाने को कहा गया! पुलिस ने उन्हें सरकार को अपना ज्ञापन और माँगपत्रक सौंपने से भी रोक दिया
घटना करीब दोपहर करीब 1:30 बजे की है। लगभग 3500 लोग किसान घाट पर जमा हुए। आरएएफ और सीआरपीएफ को वहाँ सुबह से ही तैनात किया गया था। इसके बाद,मजदूर जुलूस की शक्ल में शान्तिपूर्ण तरीके से दिल्ली सचिवालय की ओर रवाना हुए। उन्हें पहले बैरिकेड पर रोक दिया गया और पुलिस ने उनसे वहाँ से चले जाने को कहा। प्रदर्शनकरियों ने सरकार के किसी प्रतिनिधि से मिलने और उन्हें अपना ज्ञापन देने की बात कही। प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली सचिवालय की ओर बढ़ने की कोशिश की। तभी पुलिस ने बिना कोई चेतावनी दिए बर्बर तरीके से लाठीचार्ज शुरू कर दिया और प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। पहले चक्र के लाठीचार्ज में कुछ महिला मजदूर और कार्यकर्ता गंभीर रूप से घायल हो गयीं और सैकड़ों मजदूरों को पुलिस ने दौड़ा दिया। हालांकि,बड़ी संख्या में मजदूर वहाँ बैरिकेड पर रुके रहे और अपना 'मजदूर सत्याग्रह' शुरू कर दिया। यद्यपि पुलिस ने कई मजदूरों को वहाँ से खदेड़ कर भगा दिया, फिर भी, लगभग 1300 मजदूर वहाँ जमे हुए थे और उन्होंने अपना सत्याग्रह जारी रखा। लगभग 700 संविदा शिक्षक सचिवालय के दूसरी ओर थे,जो प्रदर्शन में शामिल होने आए थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें प्रदर्शन स्थल तक जाने नहीं दिया। इसलिए उन्होंने सचिवालय के दूसरी तरफ अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा। संगठनकर्ताओं ने पुलिस को याद दिलाया कि सरकार को ज्ञापन देना उनका संवैधानिक अधिकार है और सरकार इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य है। इसके बाद भी, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को सचिवालय जाने और अपना ज्ञापन सौंपने नहीं दिया। जाहिर है इस बीच प्रदर्शनकारी सचिवालय की और जाने की कोशिश कर रहे थे। अंतत: पुलिस ने उन्हें सचिवालय जाने और अपना ज्ञापन सौंपने नहीं दिया और फिर से और भी बर्कर तरीके से लाठीचार्ज शुरू कर दिया।
पुलिस की क्रूरता दहलाने वाली थी। महिला मज़दूरों और कार्यकर्ताओं व नेताओं को खासतौर पर निशाना बनाया गया। पुरुष पुलिसकर्मियों ने निर्ममता के साथ स्त्रियों की पिटाई की, उन्हें बाल पकड़कर सड़कों पर घसीटा, कपड़े फाड़े, नोच-खसोट की और अपमानित किया। अनेक पुलिसकर्मी स्त्री मज़दूरों और कार्यकर्ताओं को पकड़कर पीट रहे थे। कुछ स्त्री कार्यकर्ताओं को तो तब तक पीटा गया जब तक लाठियाँ नहीं टूट गयीं या स्त्रियाँ बेहोश नहीं हो गयीं। मज़दूरों पर नजदीक से आँसू गैस छोड़ी गयी।
सैकड़ों मज़दूर इसके विरोध में शांतिपूर्ण सत्याग्रह के लिए ज़मीन पर लेट गये, फिर भी पुलिसवाले उन्हें पीटते रहे। आखिरकार मज़दूरों ने वहाँ से हटकर राजघाट पर विरोध जारी रखने की कोशिश की, लेकिन पुलिस और रैपिड एक्शमन फोर्स ने वहाँ भी उनका पीछा किया और फिर से पिटाई की। पुलिस ने 17 कार्यकर्ताओं और मज़दूरों को गिरफ्तार किया। युवा कार्यकर्ता अनन्त को हिरासत में लेने के बाद भी पीटा जाता रहा। पुलिस वाले भद्दी-भद्दी गालियाँ दे रहे थे। हिरासत में अन्यों के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया गया। सभी गिरफ्तार व्यक्ति घायल थे और उनमें से कुछ को गंभीर चोटें आयी थीं। स्त्री कार्यकर्ताओं को भी पुलिस वाले लगातार अश्लील गालियां देते रहें। गिरफ्तार किये गये 13 पुरुषों में से सभी घायल थे और उनमें से 5 को गंभीर चोटें आयी थीं। लेकिन उन्हें चिकित्सा उपचार के लिए 8 घंटे से ज्यादा इंतजार कराया गया जबकि उनमें से दो के सिर की चोट से खून बह रहा था।
इस तरह केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की मज़दूर आबादी के साथ घिनौना विश्वासघात किया है जिन्हों ने 'आप' पर बहुत अधिक भरोसा किया था। दिल्ली की मेहनतकश आबादी आम आदमी पार्टी की धोखाधड़ी के लिए उसे माफ नहीं करेगी। हम जानते हैं कि आप सरकार दिल्ली की ग़रीब मेहनतकश आबादी से किये गये वादे पूरा नहीं कर सकती है, खासकर स्थायी प्रकृति के कामों में ठेका प्रथा खत्मा करना, क्योंकि अगर उसने ऐसा करने की कोशिश भी कि, तो वह दिल्लीं के व्यापारियों, कारखाना मालिकों, ठेकेदारों और छोटे बिचौलियों के बीच अपना सामाजिक और आर्थिक आधार खो बैठेगी। आप की असली पक्षधरता दिल्लीं के निम्न बुर्जुआ वर्ग और नव धनाड्यों के साथ है जो कि आप के दो महीने के शासन में साफ जाहिर हो चुका है। 'आम आदमी' की मजदूर वर्गीय जुमलेबाजी सिर्फ कांग्रेस और भाजपा से लोगों के मोहभंग से पैदा हुए अवसर का लाभ उठाने की रणनीति का हिस्सा थी। दिल्ली के मज़दूर आज इस सच्चाई को समझने की तरफ बढ रहे हैं।
इसी के साथ ये बातें हमारा काफी उत्साह बढ़ाती हैं कि 25 मार्च को ही पुलिस बर्बरता और केजरीवाल सरकार के विरुद्ध दिल्ली के हेडगेवार अस्पताल के कर्मचारियों ने स्वत:स्फू्र्त हड़ताल कर दी। दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के मज़दूरों, अन्य अस्पतालों के ठेका मज़दूरों, ठेके पर काम करने वाले शिक्षकों, झुग्गीवासियों और दिल्ली के ग़रीब विद्यार्थियों और बेरोजगार नौजवानों में गुस्सा सुलग रहा है। दिल्ली का मज़दूर वर्ग अपने अधिकार हासिल करने और केजरीवाल सरकार को उसके वादे पूरे करने के लिए बाध्य करने के लिए कमर कसेगा हम उम्मीद करते हैं। हम यह भी उम्मीद करतें हैं कि मज़दूरों को कुचलने की केजरीवाल सरकार की तैयारी निश्चित तौर पर उसे भारी पड़ेंगी।
हम दिल्ली में मजदूरों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज की तीव्र निंदा और उसका कटु विरोध करते हुए यह माँग करते हैं कि आप पार्टी और उसकी सरकार चुनावों में अपने किए निम्नलिखित सभी वायदों को जल्द से जल्द पूरा करे।
1. नियमित प्रकृति के काम में ठेका प्रथा को खत्म करो
2. बारहवीं तक मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करो
3. दिल्ली सरकार में पचपन हजार खाली पदों को जल्द से जल्द से भरो
4. सत्रह हजार नये शिक्षकों की भर्ती करो
5. सभी घरेलू कामगारों को स्थायी करो
6. संविदा शिक्षकों को स्थायी करो
दुनिया के मजदूरों, एक हो
पूँजीवाद-साम्राज्यवाद के खिलाफ एकजुट संघर्ष तेज करें
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