Monday, January 5, 2015

सेंट्रल यूनियनों ने एक बार फिर की जमीनी तैयारी के बिना हड़ताल की घोषणा और दिखाई लड़ाई के पहले ही पीठ 
दुहराई जा रही है असफल हउ़ाताल के जरिए मजदूर वर्ग को युद्ध के पहले ही पराजित करने की पुरानी कहानी 

मजदूर भाइयों, एकमात्र मजदूर वर्ग की एकजुट और वास्‍तविक दहाड़ ही
ठिकाने लगा सकती है पूंजीवादी सरकारों और प्रबंधन के दिमाग

साथियों,

केंद्र की मोदी सरकार बड़े पूंजीपतियों से हाथ मिलाते हुए कोयला मजदूरों के ऊपर एक और बड़े हमले की तैयारी कर रही है. अब बात कोल ऑर्डिनेंस अर्थात कोल इंडिया के निजीकरण तक पहुंच गई है. कोल इंडिया के 10 प्रतिशत शेयर बेचे जा चुके हैं] कोयला खदानों की कमर्शियल माइनिंग की इजाजत दे दी गई है. ठेकेदार मजदूरों को भारी संख्‍या में बहाल करके सरकार परमानेंट मजदूरों के हाथ पैर पहले बांध्‍ दिए हैं. स्थिति यह है कि पूरे कोल इंडिया में अब कुल कॉन्‍ट्रैक्‍ट मजदूरों की संख्‍या जल्‍द ही कुल परमानेंट मजदूरों की संख्‍या से अधिक हो जाएगी. केंद्रीय सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा 21.06.1988 को निर्गत उस नोटिफिकेशन का व्‍यवहारत निरस्‍त कर दिया गया है जिसके अनुसार खतरनाक, प्रतिब‍ंधित और स्‍थाई प्रकृति वाले कार्यों में कांटैक्‍ट मजदूरों की बहाली पर रोक के प्रावधान हैं. भूमिगत खदानों से लेकर अत्‍याधुनिक मशीनों से होने वाले कार्यों तक में कांट्रैक्‍ट मजदूरो को लगाया जा रहा है और उनका जमकर शोषण किया जा रहा है. इसके अतिरिक्‍त श्रम कानून एक्‍ट 1988, कारखाना एक्‍ट 1948 और अप्रें‍टिस एक्‍ट 1961 में ऐसे परिवर्तन किए जा रहे है जिनके पास होने का मतलब संक्षेप यह है कि मजदूर वर्ग को केंद्रीय सरकार जानवरों की तरह हांकने की तैयारी कर रही है. सारे अधिकार पूंजीपतियो को दिए जा रहे है. मजदूर वर्ग को बस गुलाम की तरह काम में लगे रहने के लिए कहा जा रहा है. मोदी सरकार के आने से जो ‘आशा’ बंधी थी, वह अब घोर निराशा में बदल चुकी है. बैंक, बीमा, रेलवे सहित सभी उद्योगों के मजदूर और कामगार निजीकरण, विनिवेशीकरण, ठेकेदारीकरण और एफडीआई आदि की नीतियो के खिलाफ गुस्‍से से भरे है और बुरी तरह आक्रोशित हैं. किसान वर्ग और युवा वर्ग तथा आम जन भी पूंजीपति वर्ग के हमलो से परेशान है. जमीन अधिग्रहण कानून में संशोधन करके किसानों की जमीन को जबर्दस्‍ती कब्‍जाने की नीति पर मोदी सरकार तेजी से काम कर रही है. महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी तथा कुपाषण की स्थिति और बदतर हुई है. इसलिए संघर्ष और लड़ाई का होना लाजिमी और आवश्‍यक दोनों है. मजदूर वर्ग को ही, खासकर औद्योगिक मजदूरों को इस लड़ाई का नेतृत्‍व करना होगा.

लेकिन दूसरी तरफ हम यह भी देख रहे हैं कि हमारी तथाकथित सेट्रल ट्रेड यूनियनें संघर्ष के बदले संघर्ष की खानापूर्ति करने में लगी है. क्‍या कोई यह दावा कर सकता है कि 6-10 जनवरी की प्रस्‍तावित पांच दिवसीय कोल इंडिया हड़ताल को सफल बनाने के लिए कोई जमीनी तैयारी की गई थी? ऐसा लगता है कि बस घोषणा कर देना ही इनका काम है और मजदूरों के बीच प्रचार करना, पर्चा-पोस्‍टर जारी करना, मजदूरों के बीच सघन और व्‍यवस्‍थित रूप से आह्रवान करना ताकि मजदूरों को संघर्ष के आहवान पर भरोसा हो सके आदि यह सब इनका काम नहीं है. वस्‍तुत इस तरह की हड़ताल का मतलब एक ऐसी कार्रवाई है जिससे सरकार को संभवत यह अहसास कराया जाता है कि मजदूर संघर्ष के लिए तैयार नहीं है और सरकार को बिना किसी से डरे अपना काम करते जाना चाहिए. घोषणावीर केंद्रीय यूनियने कहती हैं कि मजदूर लड़ने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन उल्‍टे क्‍या इनके अपने कृत्‍यों से ही यह प्रकट नहीं हो जा रहा है कि स्‍वयं ये यूनियने ही लड़ाई का नेतृत्‍व करने लायक नहीं रह गई हैं? क्‍या इसी तरह की नपुंसक, दंतविहीन और ठूंठ घोषणा के बल पर ही मजदूर पूंजीपति वर्ग द्वारा किए जा रहे ताबड़तोड़ हमलों का मुंहतोड़ जवाब देगा? क्‍या ये केंद्रीय यूनियने बस अखबारी यूनियनें बन कर नहीं रह गई हैं? हम अगर इनके द्वारा जारी मांगपत्र को लें तो मजदूरों को यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि ये यूनियने कोल ऑर्डिनेंस, जो वास्‍तव में कोल इंडिया के निजीकरण का दस्‍तावेज है, को खारिज करने या वापिस लेने की मांग तक नहीं कर रही हैं. ऐसा लगता है मानों इन्‍होंने निजीकरण को मान लिया है और फिर कुछ राहत भर की मांग कर रहे हैं. इसी तरह इन्‍होंने मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों, कारखाना कानूनों और अप्रेंटिस कानूनों में किए जा रहे घोर मजदूर विरोधी सुधारों पर भी चुप्‍पी साध ली है. मांगपत्र से लेकर हड़ताल करने के इनके तरीके अर्थात सभी मायनों में यह स्‍पष्‍ट है कि इन्‍होंने हड़ताल की घोषणा जरूर कर दी है और हो सकता है कि ये किसी तरह हड़ताल में भी चले जाएं, लेकिन इनकी मंशा मोदी सरकार के मजदूर विरोधी कदमों को वास्‍तव में रोकने की कतई नहीं है.
            मजदूर भाइयों, केंद्रीय यूनियने लड़ना चाहती हैं या नहीं यह तस्‍वीर का मात्र एक पहलू है. पूरी तस्‍वीर यह है कि मजदूर वर्ग को हर हाल में एकजुट होकर संघर्ष में उतरना ही होगा, नहीं तो सरकार मजदूरों को पूंजीपति वर्ग का पालतू जानवर बना देने में कोई कोताही नहीं करेगी. हालत यह है कि हम अब और इंतजार या देर नही कर सकते. हमें जल्‍द ही लड़ाई के केंद्र को मजबूत बनाना और फैलाना होगा और सीधी कार्रवाइयों में उतरना होगा. इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि हम छोटे हैं या वे बड़े हैं. असली ताकत मजदूर वर्ग की एकता में है और यह ताकत तभी उभरेगी जब हम संघर्ष के मैदान में कूदेंगे. असल बात है वक्‍त का नब्‍ज पकड़ना और फिर उसके अनुरूप तैयारी में लगना. मजदूर वर्ग की ताकत एकमात्र वर्ग संघर्ष में ही खुल कर प्रकट होती है.

            इसीलिए आईएफटीयू और खान मजदूर कर्मचारी यूनियन अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों सहित सभी लड़ाकू मजदूरों से यह आहवान करता है कि बिना कोई वक्‍त गवांए तथा केंद्रीय यूनियनों के नेतृत्‍व की जमीर और उनकी अंतरात्‍मा के जगने का और इंतजार किए बिना पूंजीपति वर्ग के हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने हेतु हर स्‍तर पर सीधी कार्रवाइयों मे एकजुट हो उतरें और अंतिम जीत हासिल करने के मजदूरवर्गीय दमखम के परिचय दें. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के तौर तरीकों से यह स्‍पष्‍ट है कि इस पांच दिवसीय दंतविहीन हड़ताल का केंद्रीय सरकार पर रत्‍ती भर भी प्रभाव नहीं पड़ेगा, उल्‍टे वह और बड़े हमले के लिए प्रोत्‍साहित होगी. इसीलिए हमें जल्‍द ही समय को मुटिठयों में पकड़कर इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाने की तैयारी में लग जाना चाहिए. हमें पूरा विश्‍वास है कि एकमात्र इसी तरीके से मजदूर वर्ग केंद्रीय सरकार के बुरे मंसूबों और साथ ही साथ केंद्रीय यूनियनों के नक्‍कारेपन और नाकाबिलियत का मुंहतोड़ जवाब देते हुए अपनी ऐतिहासिक जीत की मंजिल पर पहुंच सकता है.

केंद्रीय कमिटी
खान मजदूर कर्मचारी यूनियन
आईएफटीयू (सर्वहारा)
·          कॉमरेड कान्‍हाई, महासचिव द्वारा जारी और लोकनाथ प्रिंटर्स द्वारा मुद्रित (05.01.2015)  



पीडीएफ में पर्चा  के लिए नीचे क्लिक करें   https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=sites&srcid=ZGVmYXVsdGRvbWFpbnxwcmNjcGltbHxneDo2ZjdlZTE5ZDY1MTUxMDNh

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