सेन्ट्रल ट्रेड यूनियनों द्वारा पांच दिवसीय जुझारू हड़ताल को एकाएक बेनतीजा ख़त्म किये जाने के विरुद्ध आइ.एफ.टी.यू. (सर्वहारा) और खान मज़दूर कर्मचारी यूनियन द्वारा जारी परचा
जुझारू रूप ले रहे पांच दिवसीय कोल इंडिया हड़ताल को
दो दिनों में ही बेनतीजा ख़त्म क्यों किया, जवाब दो!
मजदूर
भाइयो ! आई.एफ.टी.यू. की रैली व सभा में जुटें और राष्ट्रव्यापी मजदूर आन्दोलन के नए क्रांतिकारी प्लेटफॉर्म के
निर्माण में पूरी ताकत से आगे आएं
मजदूर भाइयों,
वही हुआ जिसका अंदेशा हमें ही नहीं मजदूरों को भी था. हमने पहले वाले पर्चे
में स्पष्ट संकेत भी दिया था और फिर से
यह साबित भी हुआ कि सेंट्रल यूनियनें अब संघर्ष की रस्मअदायगी निभाने की नीयत और
क्षमता दोनों खो चुकी हैं. इन्होंने हड़ताल तब बेनतीजा वापस ले ली जब पूरे कोल
इंडिया में यह पहली बार सफलतापूर्वक (80%) जारी थी और मजदूर लाठी खाकर भी इसे और
तेज करने के लिए तैयार थे. राजमहल में हुई लाठीचार्ज के बाद की स्थिति यही बता रही
थी. लेकिन सेंट्रल यूनियनें? ऐसा लगा कि सोये शेर (मजदूर वर्ग) के जगने से सरकार
से ज्यादा ये ही बुरी तरह घबड़ा गईं! इनकी ऐसी करतूतों से ही मजदूर संघर्ष और
हड़ताल से विमुख होते गए हैं. इनकी ऐसी कारगुजारियों का एक लम्बा इतिहास है जिससे
यह लगभग तय था कि ये भाग खड़े होंगे और सरकार से हाथ मिला लेंगे. हमने ये बातें 3
जनवरी को आसनसोल में हुई इनकी सयुंक्त बैठक में भी कही थी और इसीलिए हड़ताल में
साथ रहते हुए भी इनके साथ संयुक्त रूप से हस्ताक्षर नहीं किया था.
भाइयों, इस तरह की हड़ताल की खानापूर्ति से मजदूर लड़ाई लड़ने के पहले ही पराजित हो
जाते हैं और सरकार को और भी बड़े हमले करने का प्रोत्साहन मिलता है. और ठीक यही
हुआ है. मिटींग से निकलते हुए कोयला मंत्री ने अकड़ते हुए साफ-साफ कहा कि कोल
इंडिया को लेकर सरकार की नीतियों और मुख्यत: कोल ऑर्डिनेंस को लागू करने की सरकारी
नीति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. यह हड़ताल मूलत: कोल इंडिया के निजीकरण की चल
रही प्रक्रिया को थामने हेतु बुलाई गई थी, लेकिन, उल्टा यह हुआ कि ये यूनियनें वार्ता से एक बढ़ा हुआ और एक मिलियन मीट्रिक टन
अतिरिक्त उत्पादन का लक्ष्य लेकर लौटीं, जैसा कि दूसरे दिन सभी अंग्रेजी अखबारों
में कोयला मंत्री का बयान छपा है! 2019-20 तक कुल 100 करोड़ टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य
दिया गया है!! स्पष्ट है मजदूरों के ऊपर वर्कलोड और बढेगा! ''चौबे गए छब्बे बनने, दुब्बे बन के लौटे" इसी को कहते हैं. हां, एक कमिटी का आश्वासन जरूर मिला जो यह देखेगी कि (कोल ऑर्डिनेंस लागू होने से)
मजदूरों को कोई हानि न हो. यह तो अत्यंत ही बेहूदी बात है. कोई हमारा घर छीन ले और
फिर यह कहे कि आपको दिक्कत न हो इसके लिए यह कमिटी लीजिए और शिकायत करिए! हम यह
देख सकते हैं कि हड़ताल के नाम पर मजदूरों के साथ यह कैसा भद्दा मजाक किया गया है.
हमने हड़ताल के दो दिन पूर्व जारी अपने पर्चे में इसके बारे में आगाह किया था – ''हम अगर इनके द्वारा जारी मांगपत्र को लें तो यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे कोल ऑर्डिनेंस, जो कोल इंडिया के निजीकरण का दस्तावेज है, को निरस्त करने की मांग ही नहीं कर रहे हैं. ऐसा लगता है मानों इन्होंने कोल
इंडिया के निजीकरण को सिद्धांतत: स्वीकार कर लिया है और फिर इसकी एवज में बस कुछ
राहत की मांग कर रहे हैं. इसी तरह इन्होंने मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों, कारखाना कानूनों और अप्रेंटिस कानूनों में किए जा रहे घोर मजदूर विरोधी
सुधारों पर भी चुप्पी साध ली है. मांग पत्र से लेकर हड़ताल के इनके तौर-तरीकों से
अर्थात सभी मायनों में यह स्पष्ट है कि इन्होंने हड़ताल की घोषणा अवश्य कर दी है
और हो सकता है कि वे किसी तरह हड़ताल में उतर भी जाएं, लेकिन इनकी मंशा मोदी सरकार के मजदूर विरोधी कदमों को रोकने की कतई नहीं है.'' आज इस पर्चे की एक-एक बात सच साबित हुई है. अब ये यूनियनें यह प्रचार करेंगी
कि सरकार ने निजीकरण न करने का आश्वासन दिया है, लेकिन मजदूरों को इस भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए. जब तक कोल ऑर्डिनेंस है, तब तक यह खतरा भी है. कोल ऑर्डिनेंस में यह लिखा है ''कोई कंपनी या संयुक्त उद्यम (जिसे परमिट प्राप्त है) अपनी मर्जी से चाहे अपनी खपत
के लिए, चाहे बिक्री के लिए या फिर किसी अन्य उद्देश्य के लिए
यानि किसी भी रूप में, परमिट के अनुसार, कोयला खनन कर सकता है.'' इसका सीधा अर्थ यही है कि कोल ऑर्डिनेंस लागू होगा, तो निजीकरण भी होकर
रहेगा.
स्पष्ट है मोदी सरकार निजीकरण करेगी और ये यूनियनें अब चेहरा बचाने के लिए मजदूरों
को भरमाएंगी कि सरकार ने निजीकरण नहीं करने का वचन दिया है आदि. दरअसल सरकार
निजीकरण करने के पहले कोल ऑर्डिनेंस को लागू करके निजीकरण का आधार पुख्ता करना
चाहती है जिसकी अनुमति ये यूनियनें 7 जनवरी की वार्ता में सरकार को दे आई
हैं.
मजदूर भाइयों, अब यह सवाल है कि मजदूर क्या करें? क्या मजदूर इन सेंट्रल यूनियनों के भरोसे बैठे रहें या फिर इन्हें पीछे छोड़ते
हुए लड़ाई की कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश करें? आई.एफ.टी.यू. (सर्वहारा) का स्पष्ट मानना है कि आम तौर पर समग्र मजदूर आंदोलन
और खासकर कोयला मजदूर आंदोलन के वर्तमान हस्र को देखते हुए अब इसमें देर नहीं करना
चाहिए कि राष्ट्रव्यापी कोयला मजदूर आंदोलन के एक नए क्रांतिकारी प्लेटफॉर्म के
निर्माण के लिए हम खुलकर आगे आएं. हमें इस उहापोह से भी निकल जाना चाहिए कि
एकमात्र सेंट्रल यूनियनें ही राष्ट्रव्यापी आंदोलन चला सकती हैं. हमें अब सेंट्रल
ट्रेड यूनियनों की चिंता छोड़ देनी चाहिए. आखिर मजदूर कब तक इनके भरोसे लूटते
रहेंगे. हम यह नहीं भूलें कि हम अगर नहीं लड़े और कमर नहीं कसे तो सरकार हमें
पूंजीपति वर्ग का पालतू जानवर बना देने में कोताही नहीं करेगी. इसीलिए साथियों, आइए, इस विकट परिस्थिति में हम संघर्ष के नये प्लेटफॉर्म को पूरे कोल इंडिया में
बनाने में लगें. लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. जंग नए सिरे से और नए रूप में जारी
है. आइए, यूनियन का दायरा तोड़ते हुए एक वर्ग के बतौर एकजुट हो एक
नये राष्ट्रव्यापी जंगी प्लेटफॉर्म की तैयारी में लगें.
रैली व सभा का
विवरण इस प्रकार है -----
1.
झांझरा, 18 जनवरी, 4.30 बजे शाम हिंदी स्कूल परिसर में
2.
केंदा, 19 जनवरी, 4.30 बजे शाम, बहुला बाज़ार में
3.
पांडेश्वर, 20 जनवरी 4.30 बजे शाम, डालूबांध कोलियरी ऑफिस के सामने केन्द्रीय कमिटी
खान मजदूर कर्मचारी यूनियन
आई.एफ.टी.यू. (सर्वहारा)
मोबाइल संपर्क (0)94345773344
खान मजदूर कर्मचारी यूनियन के लिए कॉमरेड
कान्हाई बर्णवाल, महासचिव, आईएफटीयू ऑफिस, हरिपुर द्वारा जारी और लोकनाथ
प्रिंटर्स द्वारा मुद्रित (14.01.2015)
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