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पूंजीवादी विपक्षी पार्टियाँ रेलवे बज़ट को दिशाहीन बता रही हैं. यह.सच नहीं है. ऐसा कहने के पीछे उनकी मंशा भी स्पष्ट है. वे देश में चल रही घोर रूप से पूंजीपक्षीय नीतियों पर चर्चा न हो यह चाहते हैं. सच्चाई यही है कि रेलवे बजट की दिशा सुस्पष्ट है. और वह दिशा है देश में पहले से ही जारी वह दिशा जिसे हम कुख्यात नवउदारवाद की दिशा के नाम से जानते हैं. मोदी सरकार के ( प्रथम) रेलवे बज़ट 2014 में देश में जारी वही पुराने 'कांग्रेसी' पूंजीपक्षीय आर्थिक सुधारॉं की निरंतरता का सहज़ बोध होता है. कोई भी बज़ट को देखकर यह समझ सकता है. निजीकरण और विनेवेशीकरण का वहीं घोर पूंजीपक्षीय ज़ोर, वही एफ.डी.आई., रेलवे जैसी देश की बहुमूल्य संपदा को बेचने की पहले ही जैसी तैयारी और इसके लिए वही पुराने घिसे-पिटे तर्क, कम आय वाले यात्रियों की सुविधाओं के प्रति वही दुराव व उपेक्षा की पुरानी भावना, आम यात्रियों व रेलवे की सुरक्षा के प्रति वही लापरवाही भरा नज़रिया और लचर नीति ..जी हाँ, सब कुछ पहले जैसा ही है. बल्कि, यह कहना चाहिए कि उसी पुरानी दिशा में जाने की रफ़्तार और तेज हो गयी है. पहले से ही छोटे-छोटे हिस्सों में बेची जा रही रेलवे को जल्द ही पूरी तरह से और तेज़ी से बेचने की नीतियों की स्पष्ट झलक इस रेलवे बज़ट में देखी जा सकती है. तब रेल भाड़ा का क्या होगा इसकी बस कल्पना की जा सकती है. और इसके तर्क ? वही 'कांग्रेसी' अर्थात खांटी रूप से पूंजीपक्षीय- नवउदारवादी तर्क हैं जिन्हें कल तक कांग्रेस देती थी लेकिन आज़ मोदी सरकार द्वारा आज़ दिए जा रहे है, याने, कहा जा रहा है कि आख़िर रेलवे के विकास के लिए पैसा कहाँ से आएगा? हम जानते हैं कि रेल भाड़ा में वृद्धि के लिए भी यही तर्क दिया गया था. कोई इनसे पूछे तो सही कि बुलेट ट्रेन में अरबों रुपये किसके लिए और किसकी इज़ाज़त से फूँके जा रहे हैं? आख़िर इसकी माँग किस जनता ने की थी? रेलवे मंत्रालय के भारी भरकम खर्च को आम जनता क्यों ढोती रहे? पर सवाल है, जनता के अंदर इन सुलगते-जलते प्रश्नों का जवाब देने की किसे पड़ी है ? कौन है जो आम जनता की बात भी सुनने के लिए भी तैयार है? मार्क्स ने कहा है न - " अगर मज़दूर वर्ग क्रांतिकारी नहीं हैं, तो कुछ भी नहीं है." इसी को हम इस तरह कह सकते हैं कि - "आम जन साधारण लोग क्रांतिकारी नहीं हैं, तो वे कुछ भी नहीं हैं." और उनकी सुनने वाला भी कोई नहीं होगा.यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे अब किसी प्रमाण की कोई ज़रूरत नहीं है.
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