Friday, August 28, 2015

इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स (सर्वहारा) द्वारा जारी वक्‍तव्‍य


मजदूर हितों पर हो रहे भीषण हमले के खिलाफ 

2 सितंबर 2015 को केंद्रीय यूनियनों (सीटू, ऐटक, इंटक, एच.एम.एस और बी.एम.एस आदि) 

के द्वारा ''एक दिवसीय राष्‍ट्रव्‍यापी'' हड़ताल की पुकार पर  


आई.एफ.टी.यू का मंतव्‍य


'' फिर से वही रस्‍मअदायगी ''




आगामी 2 सितंबर 2015 को सीटूएटकइंटकऐक्‍टूआई.एफ.टी.यू.(एन.डी.)एच.एम.एस और बी.एम.एस ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में व्‍यापक रद्दोबदल कर के मजदूर हितों पर किये जा रहे भीषण हमले के खिलाफ एक बार फिर से ''एक दिवसीय'' राष्‍ट्रव्‍यापी हड़ताल की घोषणा की है और खासकर मजदूर वर्ग का आह्वान किया है कि वे इसे सफल करें। आई.एफ.टी.यू (सर्वहारा) इस हड़ताल में शामिल मजदूर वर्गीय मुद्दों के समर्थन में है और इसलिए हम हड़ताल के विरूद्ध नहीं हैं। लेकिन असली प्रश्‍न इसके बाद खड़ा होता है कि ''एक दिवसीय हड़ताल'' का यह आह्वान क्‍या सच में संघर्ष का आह्वान है या फिर वास्‍तव में मजदूर वर्ग के संघर्ष से भाग खड़े होने की छिपी हुई कार्रवाई हैप्रश्‍न उठता हैआखिर ''एक दिवसीय हड़ताल'' कब तकसंघर्ष के नाम पर संघर्ष की रस्‍मअदायगी कब तकइन केंद्रीय यूनियनों व फेडरेशनों द्वारा 1991 से जारी ''टोकेनिज्‍म'' का इतिहास और हमारा अनुभव यही बताता है कि इनकी यह ''टोकेनिज्‍म'' या ''रस्‍मअदायगी''  मजदूर वर्ग के वास्‍तविक संघर्ष से भाग खड़ा होने का बहाना हैना की संघर्ष का कोई सच्‍चा आह्वान है। जब भी आज के भारत में मजदूर वर्ग की पराजय का इतिहास लिखा जायेगातो इनकी इस ''रस्‍मअदायगी'' को पराजय के सबसे बड़े अंदरूनी कारणों में से एक माना जायेगा। इसे आसानी से समझा जा सकता है कि आज जब समय की माँग मजदूर वर्ग के एक ऐसे आंदोलन की है जिसके बल पर मजदूर वर्ग पूँजीवादी-फासीवादी सरकार को हमले बंद करने के लिए बाध्‍य करा पाये और इसके घमंड को चूर-चूर कर सके, तब एक दिवसीय हड़ताल कर के संघर्ष की रस्‍मअदायगी करने का क्या औचित्‍य है

''एक दिवसीय हड़ताल'' का मजदूर वर्गीय आंदोलन में क्‍या स्‍थान रहा है इसे हम सबको समझना चाहिए। यह एक तरह का ''फ्लैग मार्च'' होता है मजदूर वर्ग की टु‍कडि़यों का फ्लैग मार्च -  जिसके जरिए मजदूर वर्ग पूँजीपति वर्ग और उसकी सरकार को चेतावनी जारी करता है कि वे हमले बंद करेंनहीं तो हम सड़कों पर उतरेंगे और जंग होगी। यह एक बारदो बार या तीन बार हो सकता है। सोचने की बात यह है कि इसके बाद भी अगर सरकार और पूँजीपति वर्ग हमला नहीं रोकते हैंतो मजदूर वर्ग क्‍या इसके बाद भी ''फ्लैग मार्च'' ही करता रहेगा या युद्ध ( आर-पार के संघर्ष) में उतरने की तैयारी करेगालेकिन हम पाते हैं कि इन यूनियनों ने 1991 से लेकर अब तक बीसियों बार बस फ्लैग मार्च किये हैं और आज भी कर रही हैं। वे इससे आगे बढ़ने के लिए कतई तैयार नहीं हैं। युद्ध की बात तो वे सपने में भी नहीं सोंचती हैं। और इस बीच मजदूर वर्ग पर हमले लगातार जारी हैं। मजदूर वर्ग के किले एक-एक कर ध्‍वस्‍त हो रहे हैं। मजदूरों के एक अहम हथियार ''फ्लैग मार्च'' (चेतावनी के रूप में एक दिवसीय हड़ताल) को भी इन यूनियनों ने अपने भगोड़ेपन को छुपाने के एक अस्‍त्र के रूप में परिवर्तित कर इसे पतित और कलंकित कर दिया है। सच तो यह है कि इन यूनियनों की इस टोकेनिज्‍म की कार्रवाई से मजदूर वर्ग की संघर्षकामी (संघर्ष करने की) आकांक्षा भी खत्‍म होती जा रही है।

इसी वर्ष 6-10 जनवरी को हुई कोल ऑर्डिनेंस के विरूद्ध 'ऐतिहासिक' पाँच दिवसीय कोल इंडिया हड़ताल का क्‍या हस्र हुआ हम देख चुके हैं। न सिर्फ इसे दो दिनों में ही खत्‍म कर दिया गया और बी.एम.एस. तथा उसके पीछे-पीछे दूसरी यूनियनें भी (यहाँ तक कि सीटूएटक भी) बीच लड़ाई से भागकर मोदी सरकार की गोद में जा बैठींबल्कि मजदूर वर्ग कोल ऑर्डिनेंस को भी पारित होने से रोक नहीं सका। आज एक बार फि‍र से उसी बी.एम.एस की अगुआई में वही भगोड़े वाम यूनियन व फेडरेशन श्रम कानूनों के खिलाफ एक दिवसीय हड़ताल कर रहे हैं तो इसका हस्र भी शुरू से ही स्‍पष्‍ट है। एक तरह से यह सरकार को इशारे करने जैसा है कि हमने संघर्ष की रस्‍म पूरी कर ली हैअब आपको जो करना है करिए। 

और वास्‍तव में ऐसा ही होगा। जैसे कोल ऑर्डिनेंस को हम नहीं रूकवा सकेवैसे ही हम इन यूनियनों के नक्‍कारेपन की वजह से श्रम कानूनों में किये जा रहे व्‍यापक रद्दोबदल को भी रूकवा नहीं सकेंगे।

इन यूनियनों ने मजदूर आंदोलन का कितना अहि‍त किया है, इसका अंदाजा हम इससे भी लगा सकते हैं कि 6-10 जनवरी के 'ऐतिहासिकहड़ताल में ये लोग श्रम कानूनों पर हो रहे हमले पर पूरी तरह चुप थे। इस बार ये लोग श्रम कानूनों पर 'गरजरहे हैंलेकिन पारित हो चुके कोल ऑर्डिनेंस की वापसी या उसे रद्द करने जैसे मुद्दे आदि पर चुप हैंअगर इनके भगोड़ेपनअवसरवादी रवैये और इनकी अकर्मण्‍यता से कल वर्तमान श्रम कानूनों को खत्‍म करने वाला विधेयक भी पारित हो जाएगा, तो क्‍या हम यह समझें कि उसके बाद ये श्रम कानूनों को खत्‍म किये जाने के विरूद्ध लड़ाई बंद कर देंगेइससे बड़ी सेवा इस पूँजीवादी सरकार और पूँजीपति वर्ग की और क्‍या होगी!

ऐसे हालात में, अब मजदूर वर्ग और इसके अगुआ तत्‍वों के हाथ में ही सब कुछ है। केंद्रीय यूनियनों के इस भयानक दुष्‍चक्र से बाहर निकलने का रास्‍ता क्‍या और कैसे निकाला जाए यह उन्‍हीं की समझदारी और पहल पर निर्भर है। हाँ, एक बात स्‍पष्‍ट है और हम इसे साफ-साफ कहना चाहते हैं कि इन केंद्रीय यूनियनों के दुष्‍चक्र से बाहर निकले बिना किसी सार्थक और फैसलाकुन संघर्ष की उम्‍मीद नहीं की जा सकती है। लेकिन यह तभी होगा जब मजदूर वर्ग के सच्‍चे अगुआ तत्‍वों के बीच से ही यानि उनके द्वारा ही पूरे देश स्‍तर पर इन भगोड़े यूनियनों की दीवारें तोड़कर सच्‍ची मजदूर वर्गीय एकता कायम करने की एक नई पहल की शुरूआत की जाएगी।

इसीलिए, हम मजदूर वर्ग के समस्‍त अगुआ तत्‍वों का और मजदूर वर्ग का इस मौके पर यह आह्वान करते हैं कि आर-पार की मजदूर वर्गीय लड़ाई को परे धकेल कर और वर्ग-संघर्ष से मजदूर वर्ग को विमुख कर के महज एक धारहीन 'एक दिवसीय हड़तालकी श्रृंखला कायम कर के मजदूर आंदोलन की इतिश्री करने वाले अंदरूनी तत्‍वों को बेनकाब करने काऔर साथ ही साथ देशव्‍यापी क्रांतिकारी मजदूर आंदोलन के एक नये केंद्रक के निर्माण के कार्यभार को गंभीरता से हाथ में लेने का सही वक्‍त आ चुका है। और इसीलिए हम तमाम लोगों को अर्थात देश के सभी विश्रंखलित परंतु सच्‍चे मजदूर वर्गीय अगुआ तत्‍वों को बिना देर किए आज से ही इस कार्यभार को पूरा करने में संगठित रूप से लग जाने का आह्वान कर रहे हैं।  

ज्ञातव्‍य है कि आई.एफ.टी.यू (सर्वहारा) ने इस बात की घोषणा जनवरी की पाँच दिवसीय हड़ताल के हुए बुरे हस्र के बाद ही कर चुकी थी कि इन केंद्रीय यूनियनों के नेतृत्‍व में मजदूर वर्ग की सार्थक लड़ाई की अब कोई संभावना नहीं है और इसीलिए हम मजदूर वर्ग के एक नये देशव्‍यापी सघर्षकामी मंच का निर्माण करने की तरफ बढ़ रहे हैं। आई.एफ.टी.यू. (सर्वहारा) एक बार फिर यह घोषणा करता है कि ये यूनियनें संख्‍या और आकार में बड़ी हो सकती हैंलेकिन उनका अब कोई भविष्‍य नहीं है क्‍योंकि वे मजदूर वर्गीय हितों से पीछे हट चुकी हैं। दूसरी तरफहम या हम जैसे अन्‍य संगठन आकार में छोटे हो सकते हैंलेकिन हमारा भविष्‍य है क्‍योंकि हम मजदूर वर्ग के तात्‍कालिक व दूरगामी दोनों तरह के हितों के हिरावल हैं और मजदूर वर्ग की पूर्ण विजय पर पूर्ण व सच्‍चे भरोसे के साथ संघर्ष के मैदान में हैं।

सबसे बड़ी बात है कि हमने हार नहीं मानी हैंजब कि दूसरी लाल झंडे वाली यूनियनों ने न सिर्फ हार मान ली हैअपितु पूँजीवाद में ही अपने लिए एक ठौर तलाश लिया है यानि पूँजीवाद के साथ मामूली नोक-झोंक का रिश्‍ता कायम करते हुए चोली-दामन का साथ कायम कर लिया है और वे मान बैठे हैं कि नवउदारवाद के साथ तालमेल बैठा कर चलना और थोड़े-बहुत ना-नुकुर के बाद उसे मानकर और स्‍वीकार कर चलना होगा। ये नवउदारवादी-फासीवादी हमलों को मजदूर वर्ग की आज की नियति मान चुके हैं और महज कुछ टुच्‍ची सुविधाओं तक अपने को सीमित कर चुकी हैं। इन यूनियनों की जमीनी सरगर्मियों को देखें तो यह और भी स्‍पष्‍ट हो जाता है कि वे किस तरह प्रबंधनसरकार और वर्तमान व्‍यवस्‍था में अपने लिए एक मुकम्‍मल जगह बना ली हैं।

जाहिर हैऔर हमारे उपरोक्‍त वक्‍तव्‍य का सार यह है कि, जब मजदूर वर्ग पूँजीवादी-फासीवादी भीषण हमलों की बौछार के बीच हथियारविहीन अवस्‍था में पड़ा है तो 2 सितंबर की सांकेतिक (एक दिवसीय) हड़ताल हार मान चुकी इन यूनियनों का एक विलाप भर हैएक मिमियाहट हैएक रूदन भर है। यह कहीं से भी निहत्‍थे और निराश मजदूरों के बीच वास्‍तविक संघर्ष और उम्‍मीद की चेतना नहीं जगाता है। यह कहीं से भी मजदूरों को शोषण और जुल्‍म के खिलाफ उठ खड़ा होने का आह्वान नहीं करता है।          

मजदूर भाइयों, आज हम और आप ऐसी ही विकट घड़ी में पड़े हैं जिसमें चारो ओर से, छल और बल दोनों से, हम पर हमले हो रहे हैं। इसीलिए हम तमाम सच्‍चे मजदूर वर्गीय सचेत अगुआ तत्‍वों से और खासकर आई.एफ.टी.यू. (सर्वहारा) के तमाम साथियों से यह समझने की अपील करते हैं कि आज हमारे सामने दोहरे कार्यभार हैं जो कठिन ही नहीं जटिल भी हैं। सबसे पहले हम उनसे यह अपील करते हैं कि इस दौरान यानि 2 सितंबर की हड़ताल में हम मजदूरों के बीच अपनी राजनीतिवैचारिक व सांगठनिक सरगर्मियाँ और तेज कर दें। एक तरफ हमारा यह कार्यभार है कि हम केंद्रीय यूनियनों की रस्‍मअदायगी की घुटनाटेकू प्रवृति के खिलाफ मजदूर वर्ग में व्‍याप्‍त घोर आक्रोश के बावजूद 2 सितंबर की हड़ताल का विरोध करने वाली पूँजीवादी-फासीवादी शक्तियों का मुंहतोड़ जवाब देंश्रम कानूनों पर और अन्‍य सभी मजदूर हितों पर मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे भीषण फासिस्‍ट हमलों के खि‍लाफ मजदूर वर्ग को जबर्दस्‍त तरीके से उद्वेलित करें और उन्‍हें वर्तमान तथा भावी मजदूर वर्गीय भीषण संघर्षों के लिए राजनीतिक व वैचारि‍क रूप से तैयार व संगठित करें। वहीं दूसरी तरफहमारा यह एक महत्‍वपूर्ण कार्यभार है कि हम और हमारे तमाम साथी पूरी ताकत से मजदूर वर्गीय संघर्ष को महज ''एक दिवसीय हड़ताल'' तक सीमित कर देने और मजदूर आंदोलन को संकेतवाद के दुष्‍चक्र में फंसा देने वाली केंद्रीय यूनियनों का, उनकी मंशा और अक्षमता का भी खुलकर पर्दाफाश करें। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमें इस अवसर का उपयोग मजदूर वर्ग को हर तरीके से शिक्षि‍त करने और संघर्ष के एक वैकल्पिक देशव्‍यापी केंद्रक के निर्माण की बात को मजदूरों तक ले जाने के लिए करना चाहिए।

आइएनिम्‍नलिखित एलान के साथ 2 सितंबर की हड़ताल में शामिल हों – 



एक दिवसीय हड़ताल की रस्‍मअदायगी छोड़ोफैसलाकुन और निर्णायक जंगी आंदोलन के लिए संगठित हों   



केंद्रीय कमिटी, इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्‍स (सर्वहारा) के तरफ से साथी शेखर, दामोदर और कान्‍हाई द्वारा संयुक्‍त तौर से जारी 

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